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हैप्पी एंडिंगवाली लव स्टोरी |
हैप्पी एंडिंगवाली लव स्टोरी | New Love Story नहीं मुझे छोड़ दो ,मुझे छोड़ दो, मुझे जीना नहीं है! मुझे मरने दो ,मुझे मरने दो , राजहंस मेंटल अस्पताल के वार्ड नंबर 3 से आवाज आ रही थी। 26 साल की आरुषि 60 साल की ऐसी महिला लग रही थी, जिनके चेहरे की चमक चली गई थी। सावला रंग, लंबे बाल आरुषि मूर्ति सी लगती थी।पर आज वह पत्थर से सख्त लग रही थी। वह 1 महीने से वहां भर्ती थी क्योंकि उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया था। उसका केस देख रही डॉक्टर नेहा पटेल ने उसके पिछले जीवन के बारे में जानना चाहा। उन्होंने सभी जानकारी उसके गांव मलकापुर यहां जा कर ली। वह एक बहुत बुद्धिमान और बहुमुखी व्यक्तिमत्व की लड़की थी। उसे 12वीं कक्षा में 99% अंक मिले थे। उसके पिता चाहते थे कि, वह डॉक्टर बने लेकिन उसका एक अलग विचार था। वह एक शिक्षिका बनना चाहती थी। उसका मानना था कि, भारत का भविष्य भावी पीढ़ी पर निर्भर है, तब उसका भावी नागरिको को लायक बनाने का सपना था। उसके पिता ने भी उसका दाखिला D.Ed में करा दिया। फर्स्ट ईयर चालू हुआ। 2 महीने में ही वह कॉलेज में मशहूर हो गई। सांवली होने के बावजूद वह गायन, चित्रकला और सभी कलाओं में पारंगत थी। इसके चलते उसने अपना एक अलग फैनबेस तैयार कर लिया था। उसमें गिरीश भी था। गिरीश बहुत सुंदर, गोरा, कद काठी मे लंबा पैसेवाले घराने का बेटा था। वह इस क्षेत्र में कैसे आया यह तो प्रश्न चिन्ह था ही। कॉलेज की सभी लड़कियां उस पर फिदा थी। लेकिन उसका ध्यान सिर्फ़ आरुषि पर था। उसे उसके बिना कुछ भी सूझता नहीं था। वह उसकी हर हरकत पर नजर रखता था। यह मामला आरुषि के नजरों से नहीं बचा था , लेकिन उसको लगता था कि, सभी अमीर लड़के बिगड़े हुए होते हैं। ईमानदारी तो होती ही नहीं लड़कों में इसलिए वो जानबूझकर उस पर ध्यान नहीं देती थी। लेकिन एक दिन, अचानक आरुषि पैदल घर जा रही थी तब उसकी बेस्ट फ्रेंड भारती उसके साथ थी। गिरीश ने उनके सामने कार रोकी और आरुषि आगे निकल गई। गिरीश भी गाड़ी से उतर गया और जिद करके आरुषि और भारती को कार में बिठा लिया और दोनों को घर छोड़ आया। उस दिन से उनकी दोस्ती और पक्की हो गई। दोस्ती कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला। 2 साल के अंदर ही दोनों में गहरा प्यार हो गया। आज रिजल्ट का दिन था। क्योंकि आरुषि कॉलेज में फर्स्ट आई थी। गिरीश भी अच्छे अंको से पास हो गया। दोनों को नगर पालिका में प्राथमिक विद्यालय में नौकरी मिली। दोनों सेटल हो गए थे। और सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन एक दिन अचानक गिरीश के पिता ने इन दोनों को एक साथ देख लिया। गिरीश ने अपने प्यार के बारे में सब कुछ बता दिया। लेकिन उसके पिता ने अपने दोस्त की बेटी माधुरी से गिरीश की शादी करवा दी। यह खबर आरुषि तक पहुंची और उस दिन से लेकर आज तक वह इस मौत का दंश झेल रही है। यह सब जानकर डॉ नेहा पटेल इन को बहुत दुख हुआ। उन्होंने उसकी बहुत मदद की ,उचित उपचार का उपयोग करके उसे इस स्थिति से बाहर निकालने में मदद की। करीब 6 महीने बाद आरुषि पहले की तरह सही हो गई। वह एक नए दृढ़ संकल्प के साथ अस्पताल से बाहर आई। उसने खुद को आदिवासी क्षेत्र में स्थानांतरित कर लिया। वहां के बच्चों को पढ़ाने ,उनकी कठिनाइयों को समझने और उन्हें प्रगति के राह में लाने का बीड़ा उठाया। उसका पुनर्जन्म हुआ था। अब वह इन बच्चों के उद्धार के लिए अपना जीवन बिताने के लिए तैयार थी। अपने हंसमुख और प्यार भरे स्वभाव के कारण वह वहां सभी की चहेती बन गई। वह स्कूल में दोहरी अध्यापिका के रूप में कार्यरत थी। वहां के प्रिंसिपल भी उसके पिता के समान स्नेही थे।वह उसे अपनी बेटी की तरह मानते थे । दोनों पति-पत्नी आरुषि को खूब लाड प्यार करते थे। प्राचार्य सेवानिवृत्त होने वाले थे। इससे वह बहुत उदास महसूस कर रही थी। आरुषि को यहां बसे हुए अब 2 साल हो गए थे। लेकिन यादों ने उसका साथ नहीं छोड़ा था। कभी-कभी वह बहुत दुखी होती लेकिन आखिरकार वह खुद अपने मन को समझा लेती। आखिर प्राचार्य के सेवानिवृत्त होने का दिन आ ही गया। बेहद भावुक रुदय से उन्हें विदाई दी गई । गांव वालों ने बड़ा आयोजन किया आरुशी अकेली रह गई। उस दिन वह बहुत रोई। अगले दिन जब वह स्कूल गई तो उसे पता चला कि एक नए शिक्षक स्कूल में आए हैं। सरपंच शिक्षक को स्कूल ले आए। उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। क्योंकि वह नया शिक्षक गिरीश था! उसने अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखाया। उसने स्वागत समारोह आयोजित किया। सरपंच और ग्रामीण गए समारोह में। अब तो आरुषी से नहीं रहा गया, उसने उससे पूछा तुम यहां क्यों आए हो? तुमने मुझे फंसाया और अब तुम देखने आए हो कि मैं जिंदा हूं या मर गई? यह कहते हुए उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे। गिरीश की आंखों से भी आंसू बह रहे थे। गिरीश बोला ,अरे सिर्फ मुझे एक बार अपना पक्ष रखने का मौका दो। और वह बोलने लगा पिताजी ने मेरी कुछ नहीं सुनी और मेरी शादी करवा दी। मैंने उसे सब कुछ बता दिया था कि मैं सिर्फ आरुषि से प्यार करता हूं। मैं तुम्हें अपने दिल में जगह नहीं दे सकता। वह भी कुछ नहीं बोली वह समझदार थी ।2 महीने बाद बाजार जाते समय अचानक उसका एक्सीडेंट हो गया, और वह इस दुनिया से चली गई। मैं क्या करूं मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था । उसके सारे काम पूरे कर के मैने तुम्हारा पता लगाया और स्थानांतरण आवेदन प्रस्तुत किया। बड़ी मेहनत से मुझे यह स्कूल मिली, तुमसे दूर होकर भी मुझे कभी खुशी नहीं हुई। मैं अपनी बाकी की जिंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं आरुषि। विल यू मैरी मी आरुषि? आरुषि ने जल्दी से गिरीश को गले लगा लिया। गिरीश ने कहा कि नियति को भी यही मंजूर था। |