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माथे का लकीर
भाग्य बताता है
माथे का पसीना
भाग्य बनाता है
कर्म करे कर्ता का पीछा,
होता प्रकट समय पर पाप
फल भोगने ही पड़ते हैं,
कितनी युक्ति लगा लो आप
जहाँ एक पथ बन्द हो,
मिले दूसरी राह।
लेकिन होनी चाहिए,
मन में थोड़ी चाह।
अपने कर्म के प्रथम साक्षी हम स्वयं होते हैं।
मन में जिसके है नहीं,
झूठ और अभिमान।
उसको ही जग में मिले,
गौरव और सम्मान।
चरित्र के मूल्य पर प्राप्त ज्ञान पतन की ओर ले जाता है।
हार जाने वाला पुनः प्रयास कर सकता है। हार मान लेने वाला का यही अंतिम प्रयास हो सकता है।


सकारात्मक संघर्ष जारी रखिये!
अपनी वाणी पर नहीं,
है जिसको अधिकार।
जीवन के हर क्षेत्र में,
जाता है वह हार।
मानाकि आप मीठा खिला नहीं सकते पर मीठे बोल तो बोल सकते हैं
परंपरा और संस्कृति हमें जीवंत और उत्सवधर्मी बनाती हैं।
इनसे जुड़े रहिये!
आधा समझना और दूगना प्रतिक्रिया देना ही आपसी सम्बंध को खराब करने के लिये सबसे बड़ी मानवीय त्रुटि है।
सद्विचार अंतर्मन से की गई प्रार्थना है।
ना घटने का भय ना लुटने का भय,
आवश्यकता नहीं रक्षक और तालों की।
सुख चैन की नींद होती है प्रतिदिन,
यही तो दौलत है, बिना दौलत वालों की।
शुद्धि के बिना सिद्धि नहीं!
समृद्धि के बिना प्रसिद्धि नहीं!!
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