बस सबको पीछे छोड़ रही थी, बिलकुल सरपट दौड़ रही थी। कीर्तिमान कई तोड़ रही थी, दोनों में लग होड़ रही थी। चालक- परिचालक दोनों में बस के चारों ही कोनों में मची हुई होड़ा-होड़ी थी सब्र सभी ने छोड़ी थी इंद्रजाल का पाश पड़ा था या फिर कोई नशा चढ़ा था जिसने एक झलक भी पा ली रह गया ठिठक कर वहीँ खड़ा था कसी हुई थी जींस कमर पर, थी कुर्ती ढीली-ढाली। जिसमे छलक-छलक जाती थी,यौवन-मदिरा की प्याली। हर एक कंठ में प्यास जगी, कुछ ऐसी बनी कहानी। संत फकीरों तक के मुँह का , सूख गया था पानी। अभी चढ़ी ही थी बस में , सर्वांग सुंदरी बाला। भ्रमर हृदयों को आज कली ने, खंड-खंड कर डाला . कितनी सीटें रिक्त पड़ी थी , सबको छोड़ दिया। चालक-केबिन में जा बैठी, उर ही तोड़ दिया। जाते ही चालक से बातें दो चार करी चालक की उम्मीदों ने मानों हुँकार भरी चालक की आँखें चमक उठी, जब दसन-द्युति को देखा। आज विधाता नें खोला है, उसकी किस्मत का लेखा। कण्डक्टर ने भी दाँव लगाया, बोला टिकट दिखाओ। थोड़ा सरको, जगह बनाओ, मुझको निकट बिठाओ। बस में चढ़ी हुई थी गबरू , एक से एक सवारी चालक-परिचालक की जोड़ी लेकिन, आज पड़ी थी भारी केबिन का शीशा बंद, पर्दा भी ढल गया। सवारियों का रश्क़, शक़ में बदल गया। फुसफुसाहट कब शोर बन गयी सवारियों की , केबिन से ठन गयी आखिर शीशा खुला, पर्दा हटा सामने थी फिर रूप की छटा लपेट कर ऊँगली, चुनरी निचोड़ रही थी कीर्तिमान कई तोड़ रही थी, दोनों में लग होड़ रही। बस सरपट दौड़ रही थी, सबको पीछे छोड़ रही थी। गंगा धर शर्मा 'हिंदुस्तान' अजमेर |