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YOUR ANGER I WILL PLACATE: bilingual [Promises and desires of love.] Your anger I will placate. My offers will not abate. Come, banish my loneliness; Make my face a smile possess. Let me drink from sweet eyes thine; I will forget all woes mine. I may see you all the time, Humming a soft tune sublime. May god grant me just one wish: Forever may be this bliss. In your curls I’ll flowers place As the mirror you do face. Khalish, friendship you may end, Yet my hand I will extend. --Written in aa, 7-7 format. --Translated from my Hindi ghazal given below. --M C Gupta 10 August 2011 ORIGINAL HINDI POEM WRITTEN ON 28 JANUARY 2003 १. रूठ जाओ अगर, मैं मनाता रहूँ रूठ जाओ अगर, मैं मनाता रहूँ नाज़ करती रहो मैं उठाता रहूँ साथ तुम जो रहो न हो तनहाई ये ज़िंदगी में सदा मुस्कुराता रहूँ तुम नज़र से मुझे जो पिलाती रहो ग़म ज़माने के सारे भुलाता रहूँ तुम हमेशा नज़र में समाई रहो मैं ख़यालों में कुछ गुनगुनाता रहूँ पल हसीं हैं बहुत न चुकें ये कभी मैं ख़ुदा से दुआ ये मनाता रहूँ आइने में निहारा करो और मैं फूल जूड़े में नाज़ुक सजाता रहूँ तुम अगर रूठ कर दूर जाओ ख़लिश पास फिर भी तुम्हारे मैं आता रहूँ. महेश चन्द्र गुप्त “ख़लिश” २८ जनवरी २००३ |