\"Writing.Com
*Magnify*
SPONSORED LINKS
Printed from https://writing.com/main/view_item/item_id/2170321--
Item Icon
\"Reading Printer Friendly Page Tell A Friend
No ratings.
Rated: E · Poetry · Experience · #2170321
About this world
कितना भागती है ये दुनिया
सब व्यस्त हैं खुद में ही
ठौर नहीं किसी को भी कहीं
कितना जागती है दुनिया।

सबको अपनी मंजिल पर जाना है
ये तेरा-मेरा बस एक बहाना है
दुर्बल को दबाकर बढ़ती है आगे
कितना डूबकर झगड़ती है ये दुनिया।

छल के जल में सरावोर है
साथ हो, पर अंदर छुपा चोर है
खुशियां जैसे चुभती हों अंतर में
कितना तड़पती और तड़पाती है ये दुनिया।

जितना दो उतना और मांगे
न दो तो गाली और ताने
खुद को माटी की मूरत बस समझे
भेड़ चाल सी चलती दुनिया।
© Copyright 2018 Shivom (shivomnasa at Writing.Com). All rights reserved.
Writing.Com, its affiliates and syndicates have been granted non-exclusive rights to display this work.
Printed from https://writing.com/main/view_item/item_id/2170321--