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तेरी याद आई, तो आती चली गई| |
तेरी याद आई, तो आती चली गई| गहरे तक दिल को जलाती चली गई|| कितने दिन हुए तुमसे मिले हुए|| याद तेरी हमको, याद दिलाती चली गई|| कौन मानेगा , हम तड़प रहे हैं यहाँ| तुम वहां दूर, ललचाती चली गई|| मुझको यकीन है हम एक ही तो हैं| यही सोच दूरी, मिटाती चली गई|| कितने मंजर नजर के सामने से गुजरे| हर मंजर में तू, झलक दिखलाती चली गई|| लिखने को गज़ल लिख रहा हूँ मैं| सच तो ये है कि तू लिखाती चली गई|| कब से पुकारता हूँ , चली आओ अब| आ तो गई फिर नखरे दिखाती चली गई|| मुझको बार-बार बस ये ही ख़याल है. कैसे मुझे तू बहलाती चली गई|| आवाज दिल से आती है बस तेरे नाम कि| ये सदा सारे जहाँ में समाती चली गई|| आसमां पे पंछी, सागर में मछलियाँ हैं| धरती पर बस तू, हवा बताती चली गई|| प्यार आना हो तो बस आ ही जाता है| तू भी जाते-जाते प्यार जताती चली गई|| गम तेरी जुदाई का भुला पाना मुश्किल| एक तू है जो इठलाई , इठलाती चली गई|| क्या मैं इतना बुरा हूँ, सच बताना| जो तू मुझसे दूरी बढाती चली गई|| नींद भी नहीं आती जालिम मुझे फिर भी| याद तेरी मिलन के सपने दिखाती चली गई|| सो रही है तू तुझे अपने जो मिले हैं| मैं जगता अकेला, रात बताती चली गई|| हो गई होंगी कुछ गलतियाँ , मानता हूँ मैं| पर सयानी थी तू , क्यों बात बढाती चली गई|| हैं कुछ आरजुएँ तुम्हारी, पूरी करूँगा मैं| क्यों ! ये सब, गैरों को बताती चली गई|| कब मैंने चाह , तू परेशान हो जरा भी| क्यों कर मुझपे तोहमत ये लगाती चली गई|| तू बढे राहे तरक्की पे मुझ को खुशी है| मेरी तमन्ना यही गीत गाती चली गई| इस मौसमे-बहार में तेरा जाना हमें अखरा| बारिस हमारे जिस्मों-जाँ को जलाती चली गई|| गंगा धर शर्मा 'हिंदुस्तान' |