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Rated: E · Lyrics · Romance/Love · #2065964
तेरी याद आई, तो आती चली गई|
तेरी याद आई, तो आती चली गई|
गहरे तक दिल को जलाती चली गई||

कितने दिन हुए तुमसे मिले हुए||
याद तेरी हमको, याद दिलाती चली गई||

कौन मानेगा , हम तड़प रहे हैं यहाँ|
तुम वहां दूर, ललचाती चली गई||

मुझको यकीन है हम एक ही तो हैं|
यही सोच दूरी, मिटाती चली गई||

कितने मंजर नजर के सामने से गुजरे|
हर मंजर में तू, झलक दिखलाती चली गई||

लिखने को गज़ल लिख रहा हूँ मैं|
सच तो ये है कि तू लिखाती चली गई||

कब से पुकारता हूँ , चली आओ अब|
आ तो गई फिर नखरे दिखाती चली गई||

मुझको बार-बार बस ये ही ख़याल है.
कैसे मुझे तू बहलाती चली गई||

आवाज दिल से आती है बस तेरे नाम कि|
ये सदा सारे जहाँ में समाती चली गई||

आसमां पे पंछी, सागर में मछलियाँ हैं|
धरती पर बस तू, हवा बताती चली गई||

प्यार आना हो तो बस आ ही जाता है|
तू भी जाते-जाते प्यार जताती चली गई||

गम तेरी जुदाई का भुला पाना मुश्किल|
एक तू है जो इठलाई , इठलाती चली गई||

क्या मैं इतना बुरा हूँ, सच बताना|
जो तू मुझसे दूरी बढाती चली गई||

नींद भी नहीं आती जालिम मुझे फिर भी|
याद तेरी मिलन के सपने दिखाती चली गई||

सो रही है तू तुझे अपने जो मिले हैं|
मैं जगता अकेला, रात बताती चली गई||

हो गई होंगी कुछ गलतियाँ , मानता हूँ मैं|
पर सयानी थी तू , क्यों बात बढाती चली गई||

हैं कुछ आरजुएँ तुम्हारी, पूरी करूँगा मैं|
क्यों ! ये सब, गैरों को बताती चली गई||

कब मैंने चाह , तू परेशान हो जरा भी|
क्यों कर मुझपे तोहमत ये लगाती चली गई||

तू बढे राहे तरक्की पे मुझ को खुशी है|
मेरी तमन्ना यही गीत गाती चली गई|

इस मौसमे-बहार में तेरा जाना हमें अखरा|
बारिस हमारे जिस्मों-जाँ को जलाती चली गई||
गंगा धर शर्मा 'हिंदुस्तान'
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