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Printed from https://www.writing.com/main/view_item/item_id/2333793-Darta-Hu-Ibadat-Se
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Rated: E · Sample · None · #2333793
A normal poem
डरता हूँ इबादत से
डरता हूँ उन आदतों से, जो याद तेरी दिलाती हैं,
डरता हूँ उन ख़्यालों से,जो मुझे फिर तुझसे जोड़ लाती हैं।
डरता हूँ उन जगहों से, जो एहसास तेरा दिलाती हैं,
डरता हूँ उन खामोशियों से, जो तेरी बातों को दोहराती हैं।

सोचता हूँ, माँग लूँ तुझे उस ख़ुदा से,

पर रुक जाता हूँ,
यह सोचकर कि कहीं वो मुझे तुझसे मिला न सके।

डरता हूँ इबादत से।

हर सुबह आँख खुलते ही पहला ख़्याल तेरा आता है,
पर समझा लेता हूँ खुद को कि तू अब प्यार किसी और का है।
कोशिश करता हूँ तुझसे नफ़रत करने की जो धोखे तूने मुझे दिया है,
पर क्या करूँ, इस दिल ने तुझसे प्यार इतना किया कि तेरी हर गलती को माफ़ मैंने किया है।

दिन-ब-दिन पछतावा करता हूँ,
काश, तेरे साथ थोड़ा और वक़्त बिताया होता।
पर ज़िम्मेदारियों के बोझ तले वो वक़्त मैंने गंवा दिया।

ना मैं गलत, ना तू सही,
शायद ये खुदा का कोई खेल रचाया है।
इस जनम में नहीं, तो किसी और जनम में,
उसने मुझे तुझसे मिलाया है।

कविता लिखना मेरा काम नहीं,
पर इस बार दर्द इतना हुआ है,
कि इस बार आँखें नहीं, दिल मेरा इतना रोया है।

लगता है डर कि तुझे इस दुनिया से कौन बचाएगा।
पर फिर सोचता हूँ,
तूने ये कदम शायद सोच कर उठाया है।

सही क्या है, गलत क्या है,
कुछ भी समझ नहीं आता है।
मेरे लिए तो तू ही मेरी दुनिया थी,
अब सब कुछ बस लगता एक धोखा सा है।

फिर भी एक उम्मीद बची है—
कि एक दिन तुझे मेरे प्यार का एहसास होगा।
पर डरता हूँ,
कि क्या वो वक़्त हमारा होगा?

डरता हूँ इबादत से।
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