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by shiv Author IconMail Icon
Rated: 13+ · Poetry · Community · #2218873
About women
कोख भी रोई है


मेरा कसूर क्या है?
इस हैवानियत के खेल में
आज बन गई खिलौना मैं
ऐसी इंसानियत के खेल में

तू इंसान है या जानवर?
क्या करूँ ये फर्क जानकर
तोड़ दीं सारी हदें
मुझे बस कमजोर मान कर!

ये तो तेरी ही भूल होगी
कि अब भी तू बच जाएगा
ये शान जल्द ही धूमिल होगी
ये वक्त ही बतलाएगा

समाज में तू महान होगा
अब तो महासंग्राम होगा
इज्जत तेरी भी उतरेगी
जब कानून की बेड़ी जकड़ेंगी

समझ क्या रखा है तूने
तेरे बाप की जागीर नहीं
बनीं हूँ दुर्गा और काली
ऐसा कोई इतिहास नहीं

अब तो सुधर जा तू
एक घर ने इज्जत खोई है
ये सब कुछ देखकर
तेरी माँ की कोख भी रोई है ।।
© Copyright 2020 shiv (shivom at Writing.Com). All rights reserved.
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